ध्यान योग
ध्यान के सागर में प्रवेश करते ही विचारों की लहरें झकझोरने लगेंगी किंतु धैर्य और अभ्यास की कला यदि आपमें आ गई यानी निरंतर आप अभ्यस्त होने लगे तो यह मानव-षरीर भव-सागर से सहज ही पार हो जाता है। दुःख, द्वेष, क्लेश आदि नष्ट हो चुके होते हैं। आत्मा अविरल, निर्मल और कांतिमय हो चुकी होती है। आप दिव्य आत्मा को धारण कर मानवलोक में रहते हुए दिव्य धाम का परम आनंद प्राप्त करने लगते हैं।
आज आवश्यकता है कि इस कलुषित वातावरण में सहज रूप से ध्यान लगाने की कला सीखना, जानना और अभ्यास करना ताकि आप स्वच्छ विचारों वाले, जन-सहयोगी एवं अलौकिकता के प्रतिमूर्ति बन सकें। इस पुस्तक में ध्यान संबंधी अथाह ज्ञान प्रायोगिक विचारों के द्वारा वर्णित है। इसमें आप वह सबकुछ पा सकेंगे जो आपके लिए अत्यंत उपयोगी है। आइए, इसे आत्मसात करें।
About the Author
महोपाध्याय ललितप्रभ सागरजी प्रसिद्ध चिंतक एवं गहरी प्रज्ञा को आत्मसात किए आध्यात्मिक गुरु हैं। अपनी प्रभावी प्रवचन-शैली के लिए ये देश भर में लोकप्रिय हैं। संपूर्ण भारतवर्ष में शांति, सद्भाव एवं सद्ज्ञान के प्रसार के लिए इन्होंने पच्चीस हजार किलोमीटर की पदयात्रा की और मानव-जाति को बेहतर जीवन जीने की कला प्रदान की। कला के प्रसार के लिए सम्मेतशिखर तीर्थ में म्यूजियम का निर्माण करवाया और साधना के विकास के लिए जोधपुर में संबोधि-धाम की संस्थापना की अनेक श्रेष्ठ पुस्तकों का लेखन एवं संपादन, टी.वी. चैनल्स पर विशिष्ट प्रवचनों का प्रसारण और आध्यात्मिक जीवन के विकास के लिए संबोधि-ध्यान शिविरों का आयोजन इनके द्वारा होता रहा है।