मनुस्मृति

मनुस्मृति

मनु महाराज हमारे आदि पूर्वज हैं। सृष्टि की उत्पत्ति उन्हीं से मानी जाती है। सभ्य एवं सुसंस्कृत समाज के लिए उन्होंने जो मर्यादाएं निर्धरित की, जो नियम बनाए और जिन विभिन्न प्रकार की नीतियों का प्रतिपादन किया वेमनुस्मृतिनामक ग्रंथ में संग्रहित हैं। निश्चय ही इन नियमों का परिपालन कर व्यक्तित्त्व का समग्र विकास एवं परमानंदमय जीवन संभव है। बाल्मीकीय रामायण एवं महाभारत में मनुस्मृति को सर्वाध्कि पुरातन एवं प्रामाणिक ग्रंथ स्वीकारा गया है। यह एक ऐसा आदर्शमानव ध्र्मशास्त्रहै जिसे विदेशी विद्वानों ने भी समादृत किया है।

जहां तक मनुस्मृति पर उठने वाले आक्षेपों-आरोपों का प्रश्न है, वह कतिपय लोगों द्वारा न्यस्थ स्वार्थ के कारण उसमें छेड़छाड़ करने उसमें घुसाए गये क्षेपकों के कारण है। ग्रन्थ के सृजन से आज तक अरबों-खरबों वर्ष बीत चुके हैं लिहाजा मूल स्वरूप का विवृफत होना स्वाभाविक है। प्रस्तुत पुस्तक में, गहन अध्ययन-अन्वेषण उपरांत क्षेपकों को हटाकर मूल तथ्यों को आपके समक्ष प्रस्तुत करने का भागीरथ यत्न किया गया है। मनुस्मृति पर अनेक विद्वानों के संस्कृत भाष्य, टीकाएं © एवं अनुवाद उपलब्ध् हैं, लेकिन सरल, सटीक और व्याख्यात्मक विवेचन का अभाव है। इस पुस्तक में इस अभाव को भी दूर करके, मनु महाराज के वचनों काव्यवहारिक पक्षसरल भाषा रोचक शैली में आपके समक्ष रखा गया है।                         पुस्तक समीक्षा - दैनिक भास्कर 03.12.2017

सरल भाषा में मनुस्मृति सार

इंदौर के हौल्कर काॅलेज में रसायन के प्रोफेसर रह चुके डाॅ. राजाराम गुप्ता की दो किताबें प्रकाषित हो चुकी हैं- मनुस्मृति और सफलता के स्वर्णिम सोपान। ‘मनुस्मृति’ जैसे वैदिक ग्रन्थ के सार को बेहद सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था, 16 संस्कार, सामाजिक व्यवस्था, राज्य संचालन, सैन्य शासन, दंड विधान और कर्म फल को सरलता से प्रस्तुत किया गया है। डाॅ. गुप्ता ने इस ग्रन्थ की महत्ता, उपयोगिता और व्यावहारिकता को ध्यान रखते हुए एक व्याख्यात्मक लेकिन संक्षिप्त ‘टीका’ लिखने का प्रयास किया है। किताब में मनुस्मृति को 12 खंडो में विस्तार दिया गया है, जिसकी भाषा किसी भी पीढ़ी के पाठक के लिए सहज और सरलता से समझने योग्य है। इन विषयों पर चर्चा करते हुए डाॅ. गुप्ता ने जहां संस्कृत में लिखेे गए मूल श्लोकों का वर्णन तो किया ही है, वहीं अंग्रेजी के शब्दोंका प्रयोग भी है, ताकि नए पाठक हिंदी के गूढ़ शब्दों का अर्थ समझने में सहज रहें।  


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